राज्य के नीति निदेशक तत्व (DPSP)

राज्य के नीति निदेशक तत्व (DPSP) 

 भारतीय संविधान में निदेशक तत्वों का अध्याय (भाग-iv) में वर्णित है। (भाग-iv) में 42वें संविधान   संशोधन के द्वारा अन्य निदेशक तत्वों को भी जोड़ा गया जिसमें-

(i) निःशुल्क वैधानिक सहायता एवं न्याय का सभी को समान अवसर प्रदान करना।

(ii) बच्चों और युवाओं के स्वास्थ्य के विकास और उनकी स्वतंत्रता तथा गरिमा को बनाए रखना और शोषण से मुक्ति।

(iii) उद्योगों के प्रंध में कर्मचारियों या कर्मकारों की सहभागिता।

(iv) पर्यावरण की रक्षा और इसका उत्थान तथा वन एवं वन्य जीवों की रक्षा।

निदेशक तत्वों को निम्नलिखित रूपों में भी व्यक्त किया जा सकता है-

1. राज्य के आदर्श।

2. राज्य की नीतियों के लिए निर्देश।

3. नागरिकें के अवादयोग्य अधिकार।

1. राज्य के आदर्श

   राज्य के द्वारा लोगों का कल्याण किया जाएगा और सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय का निर्माण होगा। अवसर की समानता, व्यक्ति और समूहों को प्राप्त होगी तथा आय प्रस्थिति की विषमता को कम करने का प्रयास किया जाएगा।

2. राज्य की नीतियों के लिए निर्देश

-  कार्य करने की न्यायपूर्ण एवं मानवीय परिस्थितियों का निर्माण होगा। श्रमिकों को सामाजिक, सांस्कृतिक अवसर प्रदान किए जाएँगे, जिससे वे गरिमापूर्ण जीवन यापन कर सकें।

-  राज्य के द्वारा संपत्ति और उत्पादन के साधनों के संकेंद्रण को रोकने का प्रयास किया जाएगा और भौतिक संसाधनों का समुदाय में समान वितरण होगा।

-  राज्य, अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव और शांति बनाए रखने का प्रयास करेगा।

सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता-

-  निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा।

-  शराब और नशीली वस्तुओं पर प्रतिबंध।

-  कुटीर उद्योगों का विकास।

-  कृषि और पशुपालन का आधुनिक तरीके से संगठन।

-  उपयोगी पशुओं के वध का प्रतिषेध, विशेषतः गाय, बछड़े और अन्य दुधारू पशु।

-  ग्राम पंचायत को स्वशासन की ईकाई के रूप में संगठित करना।

-  कमजोर वर्ग़ों के शैक्षणिक, आर्थिक हितों की रक्षा करना।

-  ऐतिहासिक एवं कलात्मक धरोहर की रक्षा करना तथा इसे बनाए रखना।

-  न्यायपालिका और कार्यपालिका का पृथक्करण।

3. नागरिकों के अवादयोग्य अधिकार

-  आजीविका का पर्याप्त अवसर।

-  पुरूष और महिला के लिए समान कार्य हेतु, समान वेतन।

-  आर्थिक शोषण के विरूद्ध अधिकार।

-  काम का अधिकार।

-  बेरोजगारी, वृद्धावस्था, बीमारी में सहायता का अधिकार।

-  श्रमिकों के लिए पर्याप्त आजीविका का अधिकार।

-  बच्चों को निःशुल्क, अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का अधिकार।

     वर्ष-1973 तक जिलाधिकारी, लोगों को जमानत भी दिया करते थे। ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण किया जा रहा है। यदि कोई राज्य सरकार, निदेशक तत्वों का पालन करने में विफल होती है, तो वहाँ अनुच्छेद-356 लागू किया जा सकता है।

निदेशक तत्वों की प्रकृति

   निदेशक तत्व, भारतीय लोकतंत्र में सामाजिक न्याय प्राप्त करने का माध्यम है। पाणिक्कर के अनुसार, निदेशक तत्व, भारत में आर्थिक समाजवाद लाने के माध्यम हैं। डॉ. अंबेडकर ने इसे आर्थिक लोकतंत्र का पर्याय माना, जो राजनीतिक लोकतंत्र से भिन्न है। स्वतंत्र भारत में सभी व्यक्तियों को समान मताधिकार प्रदान किये गए थे। लेकिन समाज सामंतवादी, सोपानिक और विषमतामूलक था। समाज में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों, पिछड़े वर्ग़ों, महिलाओं और बच्चों के कल्याण का विशेष उपाय किया गया।

   ग्रेनविल ऑस्टिन के अनुसार, निदेशक तत्व, भारतीय संविधान के अंतर्विवेक हैं। इन्होंने भारतीय संविधान को मूलतः सामाजिक क्रांति का एक दस्तावेज माना, जिसके द्वारा एक नए समतामूलक समाज की स्थापना का लक्ष्य निर्धारित किया गया। निदेशक तत्व, मूलतः सामाजिक, आर्थिक अधिकार हैं, क्योंकि इनके द्वारा राज्य और सरकार को किन्ही विशेष उद्देश्यों को प्राप्त करने का आदर्श प्रदान किया गया है। निदेशक तत्व, सदैव बने रहते हैं। इनका आपात काल में भी स्थगन नहीं हो सकता। निदेशक तत्व, मूलतः भारतीय समाज को, समाजवादी ढाँचे के रूप में ढालने के मूलमंत्र हैं। संविधान में अनुच्छेद-37 में स्पष्ट उल्लिखित है, कि निदेशक तत्वों को लागू करना, राज्य सरकार का मूल दायित्व है।

निदेशक तत्वों को कैसे लागू किया गया

(i) निदेशक तत्वों को लागू करने के संदर्भ में भूमि सुधार किया गया। जमींदारी उन्मूलन के प्रयास किए गए। भूमिहीन लोगों को भूमि का वितरण किया गया, क्योंकि भारत जैसे, कृषि प्रधान देश में जहाँ अधिकांश लोग आजीविका के लिए भूमि पर निर्भर हैं। भूमि उनकी आय का एक महत्वपूर्ण स्तो है। इसलिए अनुच्छेद-39(b) और 39(c) को प्रभावी रूप में लागू किया गया। जमींदारी उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत् हदबंदी कानून का भी निर्माण किया गया।

(ii) अनुच्छेद-40 का उपयोग अत्यंत प्रभावी रूप में किया गया। भारत में पंचायती राज का प्रयोग वर्ष-1959 से ही आरंभ हो गया। 73वें व 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से पंचायती राज को संवैधानिक आधार भी प्रदान कर दिया गया। समकालीन भारत में ग्रामीण विकास और सामाजिक न्याय में पंचायतों की भूमिका उल्लेखनीय है, क्योंकि पंचायतों के माध्यम से ही विभिन्न योजनाओं जैसे-नरेगा, इंदिरा आवास योजना में लाभार्थियों का निर्धारण ग्राम सभा के द्वारा किया जाता है। ग्राम सभा की शिक्षा समिति, विकास समिति और समता समिति के माध्यम से पंचायतों की मान्यताओं को प्रभावी रूप में क्रियान्वित किया जा रहा है। इसके अलावा वृद्धावस्था पेंशन, प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों को निःशुल्क भोजन प्रदान करना, निदेशक तत्वों के क्रियान्वयन के ज्वलंत प्रमाण हैं।

(iii) भारत में कुटीर उद्योगों और लघु उद्योगों के विकास के लिए जो कि मूलतः राज्यसूची का विषय है। संघ सरकार के द्वारा विभिन्न संस्थाओं की स्थापना, वित्तीय प्रंध और विपणन (Marketing) में राज्य सरकारों की सहायता प्रदान की जा रही है। इसी के परिणामस्वरूप अखिल भारतीय खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड का निर्माण हुआ। अखिल भारतीय हस्तशिल्प परिषद्, अखिल भारतीय हैण्डलूम बोर्ड, लघु उद्योग बोर्ड, सिल्क बोर्ड इत्यादि संस्थाओं की स्थापना निदेशक तत्वों को व्यावहारिक रूप में लागू करने के उदाहरण हैं।

(iv) वर्तमान समय में सरकार के द्वारा प्राथमिक निःशुल्क शिक्षा को अनिवार्य बना दिया गया है।

(v) अनेक राज्यों में मद्यपान निषेध कानूनों का भी निर्माण किया गया है। पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई ने भारत में मद्यपान निषेध पर अत्यधिक बल प्रदान किया था।

(vi) अनुच्छेद-50 को लागू करने के लिए वर्ष-1975 में आपराधिक दंड संहिता के द्वारा भारत में कार्यपालिका और न्यायपालिका के मध्य पृथक्क्रण किया गया। इसके द्वारा न्यायिक मामलों का निर्धारण अब न्यायिक मजिस्टेट के द्वारा होगा।

(vii) भारतीय सरकार द्वारा पर्यावरण को संरक्षित करने की अनेक योजनाओं एवं नीतियों का निर्माण हुआ है। बाघ संरक्षण योजना, जैव विविधता को बनाए रखना, अनेक संरक्षित क्षेत्रों का निर्माण करके वन्य जीवों की रक्षा करना।

(viii) निदेशक तत्वों को लागू करने के लिए मौलिक अधिकारों के भाग में अनेक संशोधन भी किए गए, जिसमें अनुच्छेद-1, 4, 17, 42, 44, 24, 25 अत्यधिक उल्लेखनीय हैं।

 अतः उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है, कि 'िनदेशक तत्व, भारतीय कल्याणकारी राज्य के मूल आधार हैं। ये केवल पुण्य आत्माओं की महत्वाकांक्षा मात्र नहीं है।'

आलोचना

 आइवर जेनिंग्स ने निदेशक तत्वों को पुण्य आत्माओं की महत्वाकांक्षा मात्र कहा है। इनके अनुसार, 'निदेशक तत्वों में वर्णित आदर्श मूलतः फेबियन समाजवादी हैं, जिसमें समाजवाद का अभाव है। इसमें उत्पादन के साधन के न्यायपूर्ण वितरण और विनिमय का भी अभाव हैं।' जेनिंग्स के अनुसार, 'निदेशक तत्व, न्यायालयों द्वारा लागू नहीं हो सकते, जिससे संविधान के महत्व में कमी होती है, क्योंकि संविधान, देश की सर्वोच्च विधि है। इनकों केवल आदर्श के रूप में स्वीकार करना त्रुटिपूर्ण है।' इनके अनुसार, यदि इसको लागू करने का प्रयास किया जाय, तो भी समस्या उत्पन्न होती है, क्योंकि सरकार के विभिन्न अंगों में संघर्ष उत्पन्न होगा। टी. टी. कृष्णमाचारी के अनुसार, 'यह भावनाओं का कूड़ेदान मात्र है।' आलोचकों के अनुसार, 'यह चुनावी घोषणा-पत्र एवं ऐसे बैंक के लिए जारी किया गया चेक है, जो दिवालिया हो चुका है।'

 कुछ आलोचकों के अनुसार, 'निदेशक तत्व, वस्तुतः हिन्दू दर्शन की मान्यताएँ मात्र है।'



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