भूकम्प (Earthquake)
भूकम्प भू-पृष्ठ पर होनेवाला आकस्मिक कंपन है जो भूगर्भ में चट्टानों के लचीलेपन या समस्थिति के कारण होनेवाले समायोजन का परिणाम होता है। यह प्राकृतिक व मानवीय दोनों ही कारणों से हो सकता है। भूकंप आने के पहले वायुमंडल में ‘रेडॉन’ गैसों की मात्रा में वृद्वि हो जाती है। अतः इस गैस की मात्रा में वृद्वि का होना उस प्रदेश विशेष में भूकंप आने का संकेत होता है।
जिस जगह से भूकंपीय तरंगें उत्पन्न होती हैं उसे ‘भूकंप मूल’ (Focus) कहते हैं तथा जहाँ सबसे पहले भूकंपीय लहरों का अनुभव किया जाता है उसे भूकंप अधिकेन्द्र (Epi Centre) कहते हैं। यह भूकंप मूल के ठीक ऊपर भूपर्पटी पर स्थित होता है।
भूकंप के इस दौरान जो ऊर्जा भूकम्प मूल से निकलती है, उसे ‘प्रत्यास्थ ऊर्जा’ (Elastic Energy) कहते हैं। भूकंप के दौरान कई प्रकार की भूकंपीय तरंगें (Seismic Eaves) उत्पन्न होती हैं जिन्हें तीन श्रेणियों में रखा जा सकता हैः-
(i) प्राथमिक अथवा लम्बात्मक तरंगें (Primary or Longitudinal Waves):- इन्हें ‘P’ तरंगें भी कहा जाता है। ये अनुदैध्र्य तरंगें हैं एवं ध्वनि तरंगों की भांति चलती हैं। तीनों भूकंपीय लहरों में सर्वाधिक तीव्र गति इसी की होती है। यह ठोस के साथ-साथ तरल माध्यम में भी चल सकती है, यद्यपि ठोस की तुलना में तरल माध्यम में इसकी गति मंद हो जाती है। ‘S’ तरंगों की तुलना में इसकी गति 40% अधिक होती है।
(ii) अनुप्रस्थ अथवा गौण तरंगें (Secondary or Transverse Waves):- इन्हें 'S’ तरंगें भी कहा जाता है। ये प्रकाश तरंगों की भांति चलती हैं। ये सिर्फ ठोस माध्यम में ही चल सकती है, तरल माध्यम में प्रायः लुप्त हो जाती है। चूंकि ये पृथ्वी के क्रोड से गुजर नहीं पाती, अतः S तरंगों से पृथ्वी के क्रोड के तरल होने के संबंध में अनुमान लगाया जाता है।
(iii) धरातलीय तरंगें (Surface or Long Period Waves) :-इन्हें ‘L’ तरंगें भी कहा जाता है। ये पृथ्वी के ऊपरी भाग को ही प्रभावित करती है। ये अत्यधिक प्रभावशाली तरंगें हैं एवं सबसे अधिक लंबा मार्ग तय करती है। यद्यपि इनकी गति धीमी होती है और यह सबसे देर में पहुँचती है परंतु इनका प्रभाव सबसे विनाशकारी होता है।
भूकम्पमूल की गहराई के आधार पर भूकम्पों को तीन वर्गों में रखा जाता है-
(i) सामान्य भूकम्प- 0-50 कि.मी.
(ii) मध्यवर्ती भूकम्प- 50-250 कि.मी.
(iii) गहरे या पातालीय भूकम्प- 250-700 कि.मी.।
जिन संवेदनशील यंत्रों द्वारा भूकम्पीय तरंगों की तीव्रता मापी जाती है उन्हें ‘भूकम्प लेखी’ या ‘सीस्मोग्रापफ’ (Seismograph)कहते हैं, इसके तीन स्केल (scale) हैं-
1.रॉसी - फेरल स्केल (Rossy Feral Scale):- इसके मापक 1 से 11 रखे गए थे।
2.मरकेली स्केल (Mercali Scale):- यह अनुभव प्रधान स्केल है। इसके 12 मापक हैं।
3.रिक्टर स्केल (Richter scale):- यह गणितीय मापक है, जिसकी तीव्रता 0 से 9 तक होती है और प्रत्येक बिन्दु दूसरे बिन्दु की तीव्रता का 10 गुना अधिक तीव्रता रखता है।
भूकम्पों का विश्व वितरण -
विश्व में भूकम्पों का वितरण उन्हीं क्षेत्रों से संबंधित है जो अपेक्षाकृत कमजोर तथा अव्यवस्थित हैं। भूकम्प के ऐसे क्षेत्र मोटे तौर पर दो विवर्तनिकी घटनाओं से संबंधित है- (1) प्लेट के किनारों के सहारे तथा (2) भ्रंशों के सहारे।
विश्व में भूकम्प की कुछ विस्तृत पेटियाँ इस प्रकार हैं :
प्रशान्त महासागरीय तटीय पेटी (Circum Pacific Belt) : यह विश्व का सबसे विस्तृत भूकम्प क्षेत्र है जहाँ पर सम्पूर्ण विश्व के 63% भूकम्प आते हैं। इस क्षेत्र में चिली, कैलिपफोर्निया, अलास्का, जापान, पिफलीपींस, न्यूजीलैंड आदि आते हैं। यहाँ भूकम्प का सीधा संबंध भूपर्पटी के चट्टानी संस्तरों में भ्रंशन तथा ज्वालामुखी सक्रियता से है।
मध्य महाद्वीपीय पेटी (Mid-continental Belt): इस पेटी में विश्व के 21% भूकम्प आते हैं। इसमें आनेवाले अधिकांश भूकम्प संतुलनमूलक तथा भ्रंशमूलक हैं। यह पट्टी केपवर्डे से शुरू होकर अटलांटिक महासागर, भूमध्यसागर को पारकर आल्प्स, काकेशस, हिमालय जैसी नवीन पर्वतश्रेणियों से होते हुए दक्षिण की ओर मुड़ जाती है और दक्षिणी पूर्वी द्वीपों में जाकर प्रशान्त महासागरीय पेटी में मिल जाती है। भारत का भूकम्प क्षेत्र इसी पेटी के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है।
मध्य अटलांटिक पेटी (Mid-Atlantic Belt) : यह मध्य अटलांटिक कटक में स्पिटबर्जन तथा आइसलैंड (उत्तर) से लेकर बोवेट द्वीप(दक्षिण)तक विस्तृत है। इनमें सर्वाधिक भूकम्प भूमध्यरेखा के आसपास पाये जाते हैं।
अन्य क्षेत्र : इसमें पूर्वी अफ्रीका की लंबी भू-भ्रंश घाटी, अदन की खाड़ी से अरब सागर तक का क्षेत्र तथा हिन्द महासागर की भूकम्पीय पेटी सम्मिलित की जाती है।