धर्मनिरपेक्षता का उद्भव
- धर्मनिरपेक्षता, जिसका उद्भव यूरोप के दैनिक जीवन में धर्म या चर्च के प्रभावों के उन्मूलन के रूप में हुआ। इसके विपरीत आधुनिकता से तात्पर्य सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों को तर्क व वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित करते हुए, धर्म के अवैज्ञानिक प्रभावों के उन्मूलन से संबंधित है। वस्तुत: धर्मनिरपेक्षता के दो पक्ष है। सकारात्मक व नकारात्मक सकारात्मक के अन्तर्गत यह मनुष्य के जीवन में ना केवल धर्म का निषेध करता है, बल्कि जीवन की प्रत्येक समस्या पर तर्क संगत रूप से विचार करना, बौद्धिक तथा वैज्ञानिक उपायों द्वारा व्यापक अर्थ में मानव कल्याण के लिए मार्ग भी प्रशस्त करता है। इसके अतिरिक्त धर्मनिरपेक्षता मनुष्य के स्वतंत्र चिन्तन तथा विस्तृत वैज्ञानिक अनुसंधानों को विशेष महत्त्व देता है।
- धर्मनिरपेक्षता के नकारात्मक पक्ष के अन्तर्गत राजनीति, कानून, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, प्रशासन, नैतिकता में धर्म का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। इन सभी क्षेत्रों से सम्बन्धित समस्याओं पर धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं बल्कि मानव कल्याण की दृष्टि से विचार किया जाना चाहिए। यह तभी सम्भव है, जब राष्ट्र के सम्पूर्ण प्रशासन व आर्थिक व्यवस्था, कानून के क्रियान्वयन को धर्म गुरूओं के हस्तक्षेप से मुक्त रखा जाए।
- भारत में धर्मनिरपेक्षता
- भारत में धर्मनिरपेक्षता को ऐसी जीवन शैली या मूल्य के रूप में स्वीकार किया गया है। जहाँ विभिन्न धर्मों के लोग समानता, स्वतंत्रता, सहिष्णुता और सहअस्तित्व की भावना के आधार पर बिना एक-दूसरे के परम्परागत विश्वासों में बाधा उत्पन्न किए, ऐसे कल्याणकारी राज्य की स्थापना करें जिसमें राज्य का अपना कोई धर्म नहीं हो तथा सभी धर्मों के प्रति सम्मान भाव रखे जाए।
- भारत ने धर्म निरपेक्षता को ऐसी जीवन शैली या मूल्य के रूप में स्वीकार किया गया है, जहाँ विभिन्न धर्मों के लोग समानता, स्वतंत्रता, सहिष्णुता और सहअस्तित्व की भावना के आधार पर बिना एक-दूसरे के परम्परागत विश्वासों में बाधा उत्पन्न किए, ऐसे कल्याणकारी राज्य की स्थापना करें जिसमें राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है तथा सभी धर्मों के प्रति सम्मान भाव रखे जाए।
- भारत में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ पंथ निरपेक्षता है, पंथ निरपेक्षता का अर्थ राज्य द्वारा स्वयं को धर्म से पृथक्क रखते हुए तथा धर्म व व्यक्ति के मध्य भावनात्मक संबंधों को स्वीकार करते हुए अपनी धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों द्वारा एक बहुलवादी समाज को बनाए रखते हुए, एक धर्मनिरपेक्ष आधुनिक समाज का निर्माण करना है।
- धर्मनिरपेक्षता का भारतीय संविधान में प्रावधान
- धर्म व राजनीति के पारस्परिक संबंधों की दृष्टि से विश्व के आधुनिक संविधानों को दो श्रेणियों में बाँटा जाता है-
- हस्तक्षेप नहीं करने वाले राज्य :- इसमें अमेरिका को सम्मिलित किया जाता है। जहाँ चर्च और राजनीति के मध्य स्पष्ट विभाजन रेखा खींची गई है। अर्थात् राज्य व धर्म के बीच प्रत्यक्ष रूप से कोई संबंध नहीं है।
- इसमें उन राज्यों को सम्मिलित किया है, जिनमें विभिन्न धर्मों के बीच कोई भेदभाव नहीं किया जाता तथा राज्य द्वारा किए जाने वाले सभी कार्य सभी धर्मों के लिए समान होते है। इस श्रेणी में इंग्लैण्ड व भारत सम्मिलित है।
- भारतीय संविधान के अनुसार भारत का अपना कोई धर्म नहीं है तथा राजनीति का अन्तिम स्रोत पारलौकिक शक्ति को ना मानकर भारतीय जनता को माना गया। अनुच्छेद : 14, 15, 16, 25, 26, 30 में धर्मनिरपेक्षता के संबंध में प्रावधान किए गए है।
- अनुच्छेद 14 :- सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान किया गया है।
- अनुच्छेद 15 :- धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर राज्य कोई भेद नहीं करेगा।
- अनुच्छेद 16 :- सरकारी नौकरियों के मामले में सभी नागरिकों को अवसर की समानता प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 25 :- प्रत्येक व्यक्ति को अन्त:करण की स्वतंत्रता अर्थात् किसी भी धर्म को निर्बाध रूप से मानने उसके आचरण करने तथा उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 26 :- किसी धार्मिक समुदाय को धार्मिक प्रयोजनों के लिए संस्थाओं की स्थापना, उसके पोषण, चल-अचल सम्पत्ति के अर्जन, उसके स्वामित्व और उसके प्रशासन का अधिकार प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 30 :- धर्म या भाषा के आधार पर सभी अल्पसंख्यकों को अपनी रूचि की शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार दिया गया।
- उपर्युक्त प्रावधानों से स्पष्ट है कि भारत का संविधान धर्म व राज्य के बीच कोई विभाजन रेखा नहीं खींचता । वह धार्मिक मामलों में भाग लेता है, लेकिन विभिन्न धर्मों के मध्य विभेद नहीं करके समानता के सिद्धान्तों को अपनाता है।
- धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की विशेषताएँ
- धर्म को व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला मानते हुए व्यक्ति तथा समुदाय को समुचित धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है।
- धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में किसी व्यक्ति या समुदाय को किसी विशेष धर्म को स्वीकार या अस्वीकार करने, उसका प्रचार-प्रसार करने या आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। अर्थात् धर्म के संदर्भ में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ-साथ सामूहिक स्वतंत्रता को भी देता है।
- राष्ट्र अपने नागरिकों को उसी सीमा तक धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है, जहाँ तक राष्ट्रीय सुरक्षा, कानून एवं शान्ति व्यवस्था में बाधक सिद्ध नहीं हो।
- धर्म के आधार पर बिना भेदभाव किए सभी व्यक्तियों को राष्ट्र का नागरिक समझा जाए तथा नागरिकों के रूप में उनके कर्त्तव्य, अधिकार, उत्तरदायित्व आदि धार्मिक विश्वासों से प्रभावित नहीं होते।
- राज्य स्वयं को धार्मिक क्रियाकलापों से पृथक्क रखता है। अर्थात् दोनों के कार्य क्षेत्र एक-दूसरे से भिन्न हों।
- राज्य, धर्म गुरूओं के हस्तक्षेप के बिना ही अपने नागरिकों की सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, नैतिक समस्याओं का समाधान स्वयं ही आवश्यक कानून बनाकर करें।
- प्रशासक (राष्ट्र के) धार्मिक अनुष्ठानों में भाग नहीं ले और ना ही राष्ट्र के प्रशासनिक कार्यों में धर्म को हस्तक्षेप की अनुमति दें।
- धर्म के आधार पर राजनैतिक दलों का गठन नहीं किया जाए और ना ही नागरिकों को धार्मिक आधार पर मतदान करने के लिए कहा जाए।
- भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है - एक मूल्यांकन
- भारतीय संविधान किसी विशेष धर्म को अपनाने तथा धर्म के आधार पर नागरिकों में भेद भाव का पूर्णत: निषेध करता है। या भारत का कोई भी राजकीय धर्म नहीं है। केवल इस आधार पर भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की संज्ञा देना उचित नहीं है। भारत में शिक्षा, नैतिकता, कानून, राजनैतिक व आर्थिक व्यवस्था धर्म से पूर्णत: स्वतंत्र नहीं है।
- अनेक धार्मिक संस्थाएं किसी विशेष धर्म के सिद्धान्तों, विश्वासों तथा कर्म काण्डों की शिक्षा प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त अल्पसंख्यक वर्गों द्वारा स्थापित धार्मिक शिक्षण संस्थाओं को आर्थिक सहायता भी देता है।
- धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ विशेष धर्मों के अनुयायी पर परम्परागत धार्मिक कानूनों का अत्याधिक प्रभाव है।
- शिक्षा व कानून की भाँति राजनैतिक जीवन भी मुख्यत: धर्म द्वारा ही शासित होता है। सभी राजनैतिक दल धार्मिक आधार पर टिकट वितरण तथा मत प्राप्त करने के लिए प्रयास करते है।
- भारतीय नागरिकों के सम्पूर्ण सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन पर भी धर्म का गहरा प्रभाव है। जन्म से लेकर मृत्यु तक धार्मिक संस्कार व कर्मकांड का शासन है।
- भारतीय संस्कृति व कला भी धर्म के प्रभाव से अछूती नहीं है। अधिकांशत: सामाजिक व सांस्कृतिक उत्सव भी अपने मूल स्वरूप में धार्मिक उत्सव है।
- उपर्युक्त विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत में धर्म निरपेक्ष की कुछ विशेषताएँ उपस्थित है, लेकिन पूर्णत: धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र कहना न्यायोचित नहीं है।
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भारतीय समाज