मानवाधिकार आयोग की स्थापना का उद्देश्य
- राष्ट्रपति ने 1993 में एक अध्यादेश जारी करते हुए मानवाधिकार को भारत में परिभाषित किया। जिसके अनुसार, भारतीय संविधान के द्वारा व्यक्तियों को दिए गए जीवन, स्वतंत्रता, समानता और गरिमा की रक्षा करना तथा अंतर्राष्ट्रीय संधियों को भारत में लागू करना एक लोकतांत्रिक राज्य में मानवाधिकारों की रक्षा करना सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। भारत दुनिया के विशाल लोकतंत्र में से एक है। भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों का व्यापक उल्लेख है। भारत में मानवाधिकार आयोग की स्थापना पेरिस मानदण्डों के अनुसार हुई।
पेरिस मानदण्ड निम्नलिखित है-
1. मानवाधिकार आयोग की स्वतंत्रता राज्य या संविधान के द्वारा होनी चाहिए।
2. यह सरकार से स्वायत्त होना चाहिए।
3. इसका निर्माण अनेक सदस्यों से मिलकर होना चाहिए।
4. पर्याप्त संसाधन मिलने चाहिए।
5. राज्य को शक्ति प्रदान किया जाए।
6. मानवाधिकारों को व्यापक रूप से लागू किया जाए।
संरचना -
आयोग में 8 सदस्य होते हैं।
1. आयोग के चेयरमैन भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश होते है।
2. उच्चतम न्यायालय का एक न्यायाधीश।
3. उच्च न्यायालय का एक मुख्य न्यायाधीश पूर्व या वर्तमान।
4. दो ऐसे सदस्य जिन्हें मानवाधिकार के बारे में व्यावहारिक ज्ञान हो।
5. अल्पसंख्यक आयोग का चेयरमैन, अनुसूचित जाति एंव जनजाति आयोग एवं महिला आयोग के चेयरमैन इसके पदेन सदस्य होते है।
6. सदस्य एवं अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए समिति, जिसके सदस्य, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा के उपसभापति, लोकसभा एवं राज्यसभा के विपक्ष के नेता।
प्रकार्य -
1. आयोग का मूल कार्य मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच करना है। यह भी देखना है कि लोक सेवकों के द्वारा मानवाधिकार के उल्लंघन को रोकने में लापरवाही न हो।
2. मानवाधिकारों के उल्लंघन का आशय, ऐसे आपराधिक कृत्य हैं जिसमें किसी को प्रताड़ित करना, हत्या करना, बलात्कार करना सम्मिलित है।
3. मानवाधिकारों की रक्षा का आयोग के द्वारा पुनरावलोकन किया जाता है, तथा उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सलाह दी जाती है।
4. अंतर्राष्ट्रीय संधियों और दस्तावेंजों का अध्ययन करके उन्हें प्रभावी रूप में लागू करने का प्रयास किया जाता है।
5. मानवाधिकार के संबंध में अनुसंधान।
6. मानवाधिकार के संबंध में जागरूकता पैदा करना।
7. मानवाधिकार से संबंधित गैर-सरकारी संगठनों का सहायता देना।
8. आयोग किसी भी व्यक्ति को गवाही के लिए बुला सकता है तथा कोई भी दस्तावेज मांग सकता है।
9. आयोग के द्वारा मानवाधिकार के उल्लंघन करने वाले व्यक्ति के विरूद्ध राज्य के द्वारा कार्यवाही का निर्देश होता है और सामान्यतः राज्य को दो महीने की अवधि में मानवाधिकार आयोग की कार्यवाही की रिपोर्ट बतानी होती है।
व्यावहारिक रूप में मानवाधिकार आयोग ने वर्ष-1994 के उड़ीसा चक्रवात के शिकार लोगों के पुनर्वास के संदर्भ में महत्वपूर्ण कार्य किए। वर्ष-2001 में गुजरात भूकंप के पश्चात् मानवाधिकार आयोग के द्वारा पीड़ितों के लिए महत्वपूर्ण सहायता उपलब्ध कराई गई, तथा आयोग ने राज्य को निर्देश दिया, कि वे लोगों के कल्याण से संबंधित कार्यों को त्वरित रूप में करे। गोधरा सांप्रदायिक दंगे के संबंध में वर्ष-2002 में आयोग ने निम्नलिखित अनुशंसाएं की-
1. महत्वपूर्ण मामलों को सी.बी.आई. को सौंपा जाए।
2. मामलों का त्वरित रूप से निपटाने के लिए विशेष न्यायालयों का गठन हो।
3. राहत शिविर में लोगों की शिकायत दर्ज करने और एफ.आई.आर. दर्ज करने की सुविधा हो।
4. लोगों का पुनर्वास किया जाए।
5. पुलिस में सुधार किया जाए।
मानवाधिकार आयोग और समस्या -
1. मानवाधिकार आयोग अपने कार्य संपादित करने के लिए संघ सरकार से पुलिस अधिकारियों को देने का अनुरोध करता है तथा मामले की जांच करने वाला अधिकारी पुलिस महानिदेशक रैंक के नीचे का अधिकारी नहीं होना चाहिए।
2. आलोचकों के अनुसार, मानवाधिकार के उल्लंघन का सबसे बड़ा आरोप पुलिस के खिलाफ है तथा पुलिस अधिकारी अपने अधिकारियों की कैसे जांच करेंगे।
3. मानवाधिकार आयोग की कार्य सीमा में सैन्य एवं अर्धसैनिक बलों को अलग रखा गया।