केन्द्रीय सूचना आयोग एक उच्च प्राधिकारयुक्त स्वतंत्र निकाय है, जो इसमें दर्ज शिकायतों की जांच करता है एवं उनका निराकरण करता है। यह केन्द्र सरकार एवं केन्द्र शासित प्रदेशों के अधीन कार्यरत कार्यालयों, वितीय संस्थानों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों आदि के बारे में शिकायतों एवं अपीलों की सुनवाई करता है।
संरचना
इस आयोग में एक मुख्य आयुक्त एवं सूचना आयुक्त होते हैं जिनकी संख्या 10 से अधिक नहीं होनी चाहिए। इन सभी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक समिति क सिफारिश पर की जाती है, जिसमें प्रमुख के रूप में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता एवं प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता एवं प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत एक कैबिनट मंत्री होता है। इस आयोग का अध्यक्ष एवं सदस्य बनने वाले सदस्यों में सार्वजनिक जीवन का पर्याप्त का अनुभव होना चाहिए तथा उन्हें विधि, विज्ञान एवं तकनीकी, सामाजिक सेवा, प्रबंधन, पत्रकारिता, जनसंचार या प्रशासन आदि का विशिष्ट अनुभव होना चाहिए।कार्यकाल एवं सेवा शर्तें
- मुख्य सूचना आयुक्त एवं अन्य आयुक्त पांच वर्ष या पैंसठ वर्ष की आयु, दोनों में से जो भी पहले हो, तक पद पर बने रह सकते है। उन्हें पुनर्नियुक्ति की पात्रता नहीं होती है।
- राष्ट्रपति आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को सिद्ध कदाचार या अक्षमता के आधार पर भी पद से हटा सकते हैं। हालांकि इन मामलों में राष्ट्रपति मामले को जांच के लिये उच्चतम न्यायालय के पास भेजते है तथा यदि उच्चतम न्यायालय जांच के उपरांत मामले को सही पाता है तो वह राष्ट्रपति को इस बारे में सलाह देता है, उसके उपरांत राष्ट्रपति अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को पद से हटा देते है।
- मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन, भते एवं अन्य सेवा शर्तें मुख्य निर्वाचन आयुक्त के समान होते है। इसी प्रकार अन्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते एवं अन्य सेवा शर्तें निर्वाचन आयुक्त के समान होते है। उनके सेवाकाल में उनके वेतन भत्तों एवं अन्य सेवा शर्तों में कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
शक्तियाँ एवं कार्य
केन्द्रीय सूचना आयोग के कार्य एवं शक्तियाँ इस प्रकार है-
1. 9आयोग का यह दायित्व है कि वे किसी व्यक्ति से प्राप्त निम्न जानकारी एवं शिकायतों का निराकरण करें :
(क) जन सूचना अधिकारी की नियुक्ति न होने के कारण किसी सूचना को प्रस्तुत करने में असमर्थ रहा हो।
(ख) उसे चाही गयी जानकारी देने से मना कर दिया गया हो।
(ग) उसे चाही गयी जानकारी निर्धारित समय में प्राप्त न हो पायी हो।
(घ) यदि उसे लगता हो कि सूचना के एवज में मांगी फीस सही नहीं है।
(ड) यदि उसे लगता है कि उसके द्वारा मांगी गयी सूचना अपर्याप्त, झूठी या भ्रामक है, तथा
(च) सूचना प्राप्ति से संबंधित कोई अन्य मामला।
2. यदि किसी ठोस आधार पर कोई मामला प्राप्त होता है तो आयोग ऐसे मामले की जांच का आदेश दे सकता है।
3. जांच करते समय, निम्न मामलों के संबंध में आयोग को दीवानी न्यायालय की शक्तियां प्राप्त होती है।
(क) वह किसी व्यक्ति को प्रस्तुत होने एवं उस पर दबाव डालने के लिये सम्मन जारी कर सकता है तथा मौखिक या लिखित रूप से शपथ के रूप साक्ष्य प्रस्तुत करने का आदेश दे सकता है।
(ख) किसी दस्तावेज को मंगाना एवं उसकी जांच करना।
(ग) शपथ-पत्र के रूप में साक्ष्य प्राप्त करना।
(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से सार्वजनिक दस्तावेज को मांगना।
(ड) किसी गवाह या दस्तावेज की जांच करने के लिये सम्मन जारी करना तथा
(च) कोई अन्य मामला जो निर्दिष्ट किया जाए।
4. शिकायत की जांच करते समय, आयोग लोक प्राधिकारी के नियंत्रणाधीन किसी दस्तावेज या रिकार्ड की जांच कर सकता है तथा इस रिकार्ड को किसी भी आधार पर प्रस्तुत करने से इंकार नहीं किया जा सकता है।
5. आयोग को यह शक्ति प्राप्त है कि वह लोक प्राधिकारी से अपने निर्णयों का अनुपालन सुनिश्चित करें, इसमें सम्मिलित है।
(क) किसी विशेष रूप में सूचना तक पहुँच।
(ख) जहां कोई भी जन सूचना अधिकारी नहीं है वहां ऐसे अधिकारी को नियुक्त करने का आदेश देना।
(ग) सूचनाओं के प्रकार या किसी सूचना का प्रकाशन
(घ) रिकार्ड के प्रबंधन, रख-रखाव एवं विनिष्टीकरण की रीतियों में किसी प्राकार का आवश्यक परिवर्तन।
(ड) सूचना के अधिकार के बारे में प्रशिक्षण की व्यवस्था।
(च) इस अधिनियम के अनुपालन के संदर्भ में लोक प्राधिकारी से वार्षिक प्रतिवेदन प्राप्त करना।
(ज) इस अधिनियम (आयोग लोक सूचना अधिकारी पर 250 रू. प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना लगा सकता है, जो अधिकतम 25000 रू. हो सकता है। यह दोषी अधिकारी के विरूद्ध अनुशासनत्मक कार्यवाही की सिफारिश कर सकता है।) के अंतर्गत अर्थदण्ड लगाना।
(झ) किसी याचिका को अस्वीकार करना।
6. इस अधिनियम के क्रियान्वयन के संदर्भ में आयोग अपना वार्षिक प्रतिवेदन केन्द्र सरकार को प्रस्तुत करता है। केन्द्र सरकार इस प्रतिवेदन को प्रस्तुत करता है। केन्द्र सरकार इस प्रतिवेदन को दोनों सदनों को पटल पर रखती है।
7. जब कोई लोक प्राधिकारी इस अधिनियम का पालन नहीं करता तो आयोग इस संबंध में आवश्यक कार्यवाही कर सकता है। ऐसे कदम उठा सकता है जो इस अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित करें।